राम मंदिर निर्माण में जुटे इंजीनियरों के सामने आई तकनीकी चुनौतियां, टेस्टिंग के दौरान खिसक गए पिलर
By: Pinki Tue, 15 Dec 2020 2:26:52
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में जुटे इंजीनियरों के सामने तकनीकी चुनौतियां आ रही हैं। मंदिर निर्माण के लिए जब 200 फीट नीचे के मिट्टी की जांच की गई तो पता चला वहां की मिट्टी बलुआ है यानी सिर्फ पत्थरों से बनने वाले राममंदिर के भार को उठाने के लिए जिस तरह की मिट्टी की दरकार थी वो मिट्टी वहां नहीं मिल पा रही है। दरअसल पाइलिंग टेस्ट के दौरान पिलर थोड़ा खिसक गया था। पता चला कि इसकी वजह जमीन के नीचे सरयू नदी की परत मिलना है। राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए 12 सौ स्तभों का निर्माण किया जाना है। इसके पहले टेस्टिंग के लिए 12 पिलर का निर्माण किया गया है। लेकिन टेस्टिंग के दौरान जब इस पर भार डाला गया तो कुछ पिलर जमीन के निचले हिस्से में खिसक से गए। टेस्टिंग का यह कार्य आईआईटी चेन्नई के विशेषज्ञों ने किया।
सरयू नदी राम जन्मभूमि के करीब से बहती थी
सरयू नदी के किनारे होने के कारण बुनियाद में मिल रही बालू के कारण मंदिर की मजबूती को लेकर सवाल पैदा हो रहे हैं। तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि कभी इसके पास से सरयू नदी गुजरती रही होगी। गोस्वामी तुलसीदास ने जब रामचरित मानस की रचना की थी उस समय सरयू नदी राम जन्मभूमि के और करीब से बहती थी। इसीलिए यहां वाटर लेवल का स्टेटस भी और स्थानों के अपेक्षा ऊपर है। यही कारण है कि जमीन के नीचे रेत की परत है। जबकि तलाश मजबूत और ठोस जमीन की है।
रामजन्म भूमि पर पिछले एक महीने से ज्यादा से पाइलिंग की खुदाई कर मिट्टी की जांच का काम चल रहा है लेकिन जब मंदिर निर्माण में लगी कंपनी लॉर्सन एंड टूब्रो को मनमाफिक मिट्टी की परत नहीं मिली तो रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सामने दिक्कतें आईं।
अब मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र की अध्यक्षता में एक सब-कमिटी बनाई गई है जिसमे देश के नामी और प्रतिष्ठित तकनीकी विशेषज्ञ मंदिर की नींव फाउंडेशन को लेकर अपनी अनुशंसा देंगे। निर्माण एजेंसी के विशेषज्ञों और ट्रस्ट के सदस्यों के बीच 2 दिन के विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि अब तकनीकी सब-कमिटी की रिपोर्ट के बाद नए सिरे से मंदिर निर्माण के फाउंडेशन की शुरुआत होगी। अब विशेषज्ञों की नई रिसर्च रिपोर्ट जल्द आएगी। बताया जाता है कि इस रिपोर्ट पर मंथन के बाद ही अब राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू होगा।
1000 साल हो मंदिर की आयु
राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण ईट के बजाए पत्थर की तराशी गयी शिलाओं से होगा। निश्चित रूप से शिलाओं का वजन भी अधिक होगा। राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट चाहता है कि राम जन्मभूमि पर बनने वाले श्री राम जन्मभूमि मंदिर की अवधि 1000 साल से कम ना हो। इसीलिए यह तय किया गया कि राम मंदिर की बुनियाद के पिलर में लोहे की सरिया का इस्तेमाल ना किया जाए, क्योंकि लोहे में जंग जल्दी लगता है।
बालू में किया जाएगा पिलर को बोर
विशेषज्ञों की सलाह के बाद यह तय हुआ है कि जिस तरह नदी में निर्माण के लिए पिलर को बोर किया जाता है उसी तरह राम मंदिर निर्माण के लिए भी अत्याधुनिक मशीनों के जरिए बुनियाद के पिलर को जमीन में बोर किया जाएगा। इसमें परीक्षण के बाद चुनी गई पत्थर की गिट्टी और मोरंग के साथ उच्च क्षमता वाली सीमेंट में अलग से केमिकल का मिश्रण कर उसकी क्षमता बढ़ाई जाएगी और इसके बाद इन तीनों के मिश्रण को मशीन के जरिए पिलर के लिए खोदे गए गहरे होल में सांचे के माध्यम से डाला जाएगा जिससे सूखने के बाद वह पिलर शिला में तब्दील हो जाए।
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